आज मैं आपको मुसलमान होने के फायदे बताऊंगा. अगर कोई
मुसलमान है तो उसे क्या क्या फायदे है या कोई अगर मुसलमान
बनता है तो उसके उसे क्या क्या फायदे होंगे? जहाँ तक इस
क़ायनात (सृष्टि) के मालिक (जिसका वास्तविक नाम 'अल्लाह' है)
का संबंध है, आप उसे उसकी बहुत सी
निशानियों के ज़रिये आसानी से पहचान सकते हैं, आप
उसे अपने नजदीक कर सकते हैं, उसके नामों के ज़रिये
अपने और उसके रिश्ते को समझ सकते हैं और आप उसे दिन में
२४ घंटे और पूरे साल अपनी नमाजों के ज़रिये
अपनी बात कह सकते हैं. आप इस दुनिया में क्यूँ
आये? आपका इस दुनिया में पैदा होने का मकसद क्या है? सबसे
बड़ी बात है कि आप के पास जवाब होंगे उन सब शब्दों
के जिन्हें क्यूँ, कैसे, कब, कहाँ, क्या और दीगर
दार्शनिक और तत्वज्ञान सम्बन्धी सवालों के.
सबसे पहला फ़ायदा तो यह है कि आपकी
वफ़ादारी, ईमानदारी, सच्चाई, आज्ञापालन,
आज्ञापरता केवल आपके मालिक (creator) के लिए
ही होंगी. आप इस दुनिया में
अपनी उक्त विशेषताओं से पहचाने जायेंगे. आपका
संघर्ष चाहे वो आपके बॉस से हो, आपकी
नौकरी या पेशे से हो, आपके निज़ाम (गवर्नमेंट) से
हो, आपके सामाजिक तंत्र से हो, सब के सब आप के उस मालिक
(अल्लाह) से सम्बद्ध होगा, आप बेशक (undoubtedly)
अपने मालिक (अल्लाह) पर विश्वास करेंगे. आप
किसी अन्य का अनुसरण करने के बजाये उस एक
ईश्वर के नियमों का अनुसरण करेंगे.
दूसरा फ़ायदा यह होगा कि आप अपने आप में, अपने परिवार
में, इस दुनिया के लोगों में, वातावरण में, और इस दुनिया में शांति का,
अनुरूपता का, अक्षोभ और खुशियों और आनंद का संचार करेंगे.
तीसरा फ़ायदा यह होगा कि आपके
शरीर पर, मष्तिष्क पर, तंत्रिका तंत्र पर कोई फालतू का
जोर और टेंशन नहीं रहती है क्यूंकि
आप दिन में पांच बार वुज़ुः (मुहं, हाँथ और पैर धोना) करके नमाज़
पढ़ते है और अपने मालिक (अल्लाह) से दुआ करते हैं. नमाज़
में जब आप सज़दा करते हैं तो अपना माथा ज़मीन पर
रखते हैं इस प्रक्रिया में आप अपनी सारी
टेंशन और अपने मस्तिष्क के अतिरिक्त बिना मतलब के भार को
ज़मींदोज़ (ख़त्म) कर देते हैं. नमाज़ पढने से आप
अपनी तमाम चिंताओं के हल के लिए अल्लाह दुआ
करते है और चिंतामुक्त होते हैं . यहीं
नहीं नमाज़ के ज़रिये आप के शरीर के
तमाम मनोरोग भी दूर हो जाते हैं. जिस तरह से अगर
आप कहीं जा रहे हों रास्ते में अगर आपको जगह-
जगह पर नहरें मिले और आप उसमें हर बार नहा लें तो
किन्हीं दो नहरों के बीच आपके
शरीर पर जितनी भी धुल या
गन्दगी जमेगी/हो जायेगी
वह धुलती जायेगी. ठीक
उसी तरह से आप अगर दिन में पांच मर्तबा नमाज़
पढेंगे तो दो नमाजों के बीच के गुनाह ख़त्म हो होते
जायेंगे और आपका मन शांत रहेगा वह सब काम नहीं
करेगा जो आपके मालिक के नियमों विरुद्ध होगा.
चौथा फ़ायदा यह होगा कि आपका व्यक्तित्व आकर्षक
(कांतिमय) बन जायेगा . आप अनुकूल और मित्रवत रहेंगे. आप
ग़लत काम से परहेज़ करेंगे, आप शराब नहीं
पीयेंगे, ड्रग्स नहीं लेंगे,
अश्लील हरक़त नहीं करेंगे, व्यभिचार
नहीं करेंगे.
पांचवां फ़ायेदा यह है कि साल में एक महीने रोज़ा
रखने के उपरांत आप अपने पर आत्म-नियंत्रण, आत्मानुशासन,
आत्म-शिक्षा, आत्म-अनुपालन के दूर सीख लेते हैं
. आप बेशक अपनी सेहत, व्यक्तित्व, चरित्र और
स्वाभाव को सुधार लेते हैं.
छठवां फ़ायदा यह है कि हवस (lust), स्वार्थपरायणता
(selfishness), इच्छाओं (desires), लालच (greed),
अंहकार (ego), दम्भ (conceitedness) आदि दुर्गुणों से दूर
रहते है और इन दुर्गुणों पर नियंत्रण रख पाते हैं.
सातवां फ़ायेदा है कि आप आर्थिक, जैविक, मानसिक,
आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक, राजनैतिक आदि क्षेत्र के
सभी प्रकार के exploitations रोकने में सक्षम होते
हैं. आप लोगों की आज़ादी के समर्थक
होंगे, उन्हें बोलने की आज़ादी के, इबादत
की आज़ादी के, समतुल्य संबंधों के
पक्षधर होंगे, निरपेक्षता (चाहे वो धार्मिक ही क्यूँ
न हो) के पक्षधर होंगे . आप नेता होंगे और लोगों में शांति,
अक्षोभ (प्रशांति) और खुशियों का नेतृत्व करेंगे.
आठवां फ़ायेदा यह कि इस्लाम स्वीकार करने के
उपरांत आप समाज की बुराईयों से दूर रहेंगे और
अच्छाईयों अमल करेंगे. आप मुसलमान बनने के बाद समाज
की बुराईयों को बढ़ने से रोकने में मदद करेंगे. जैसे-
कर्त्तव्यच्युति, अपचार. पापचरित्र, बाल-अपराध, घरेलु हिंसा,
कौटुम्बिक व्यभिचार (सगे-संबंधी के साथ यौन
सम्पर्क), समलिंगकामुकता, स्वच्छन्द संभोग, विवाहपूर्व यौन-
सम्बन्ध, विवाहेत्तर संबंधों आदि समस्त दोषों से दूर रहेंगे .
नौवां फ़ायेदा यह है कि आप समाज में उन बिमारियों से दूर कम
कर सकेंगे जो ला-इलाज हैं मसलन- AIDS आदि
दसवां फ़ायेदा यह होगा कि जब आपकी मृत्यु
होगी, आप शांति से मृत्यु को प्राप्त होंगे, कब्र
की और उसके बाद की
ज़िन्दगी भी खुशमय होगी,
अविनाशी सुख के भोगी होंगे,
आपकी मौत पर आपका साथ पाने के लिए अप्साए
लालायित होंगी, वे स्वर्ग (जन्नत) में
आपकी मुक़र्रर (आरक्षित) जगह तक ले
जाएँगी, आखिरी दिन (क़यामत के दिन,
हिसाब-किताब के दिन) आप सारे नबियों, पैगम्बरों (ईश्वर के
संदेष्टाओं) जैसे- हज़रत नूह (अ.स.), हज़रत
इब्राहीम (अ.स.), हज़रत मूसा (अ.स.), हज़रत
ईसा (अ.स.) और हज़रत मुहम्मद (अल्लाह की
उन पर शांति हो) को देख सकेंगे और उनसे मुलाक़ात कर सकेंगे.
आप अपने सरे दोस्तों, रिश्तेदारों, गर के फर्दों और महबूब को देख
सकेंगे. आप जन्नत में अनंत जीवन
व्यतीत करेंगे. (अल्लाह बेहतर जानने वाला है)
जो लाभ या फ़ाएदे और अन्य लाभ जो यहाँ अंकित नहीं
कर सका, को आप दुनिया भर की दौलत देकर
भी नहीं ख़रीद सकते. तो
क्या आप राज़ी है इस दावा को
स्वीकार करने के लिए.. ..!???
Ye post hamarianjuman.blogspot.com
Se liya gaya hai
....Deshwali..ji ka comment..
सच है की जिनकी सोच
इस्लाम के बारे मैं गंदी है
वो हमेशा अपनी गंदी सोच का
ही प्रमाण देगा ।।
इनका मुद्दा हमेशा से इस्लाम को नीचा
दिखाना और
ईस्लाम का नेगेटिव प्रमोशन करना ही है
।
दुनिया जानती है की मुसलमानों
के दिलो में
पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) की क्या
इज़्ज़त क्या रुतबा है
जिनको खुदा ने सारी इंसानियत के लिए शांति
और
अमन का दूत बनाकर कर भेजा था उनकी
शान में
बार बार गुस्ताखी करना किस
बहादुरी का नाम..
पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल.) के खिलाफ़ की
गई टिप्पणी देश का
वातावरण बिगाड़ने का प्रयास है .जो गन्दी
मानसिकता दर्शाती है
अभिव्यक्ति की आज़ादी
की बात करने वालो ।।
आज़ादी का ये मतलब नही के
किसी भी धर्म की
आस्था
को ठेंस पहुंचाई जाए आज़ादी तो यह है
के सच को सच
लिखा जाए बोला जाए।
अगर दम है तो इजराइल के ज़ुल्मो की
दास्ताँ बारे में बोलो ।।
अगर दम है तो मज़लूमो की
चीख पुकार के बारे में आवाज उठाओ।।
अगर शर्म है तो सीरिया के हालात के बारे
में बोलो ।।
अगर इंसानियत है तो अमरीका के बर्बरता
इराक़ पर बोलो ।।
अगर दिल है तो फलस्तीन
की माओं का दर्द सुनाओ ।।
अगर दर्द है तो गुजरात आसाम के किस्से ब्यान करो
।।
यह है अभिव्यक्ति की
आज़ादी..
किसी धर्म के बारे मैं गलत भाषा इस्तेमाल
करना नहीं
।
लेकिन यह जो दोहरी मानसिकता के लोग
है वो एक तरफ़ा ही बोलते लिखते थे
और बोलते लिखते रहेंगे लेकिन सच कभी
नही बोलेंगे ।।